मेरा परिचय

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मिट्टी का तन, मस्ती का मन, पल भर जीवन, मेरा परिचय......


होठों पर नगमे सीने के मध्य घाव है, मेरा मेरा पूरा जीवन पीड़ा का पड़ाव है।
मुस्कानों से धोखा खा जाता हूँ अक्सर, धोखा खाकर मुस्काना मेरा स्वभाव है ..
मित्रों पर तो बेशक न्योछावर हूँ मैं पर, अपने हर दुश्मन से भी मुझको लगाव है.
युद्धों को परिणत कर लेता हूँ यज्ञों में, श्रीमद्‍भगवतगीता का मुझ पर प्रभाव है।
कंगाली में भी है अलमस्ती का आलम, ऐसी जीवनशैली ऐसा रख-रखाव है।

Meri Duniya

About Me


मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जा‌ए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।


मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।



मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,

फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;

कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर

मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!


मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,

मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ,

जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,

मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!


मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;

है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता

मैं स्‍वप्‍नों का संसार लिए फिरता हूँ!


मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,

सुख-दुख दोनों में मग्‍न रहा करता हूँ;

जग भ्‍ाव-सागर तरने को नाव बनाए,

मैं भव मौजों पर मस्‍त बहा करता हूँ!


मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,

उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,

जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,

मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!


कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?

नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!

फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!


मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,

मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;

जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता!


मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,

हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,

मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!


मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,

मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;

क्‍यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,

मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!


मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,

मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;

जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,

मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ!


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