ये अजनबी लोग मुझे अपना कहते हैं..
पर तेरी याद में मेरी हस्ती सिमट जाती है...
में चाहता हूँ की इनको कुछ समझ सकूं...
हर बार उनकी याद जेहेन से मिट जाती है...
जागते ही जीने का एहसास होता है मुझे...
कहाँ नींद सुला गई मुझे याद नहीं कुछ भी...
तेरी हर एक अदा तैरती है आँखों में यु तो...
कोई सूरत कोई एहसास याद नहीं कुछ भी....
तुझे कितनी ही बार निकला है जेहेन से...
देखो ये भी मैं अब याद नहीं कर पा रहा हूँ...
हर बार तू और खालीपन बचते हैं मुझमें...
इसके सिवा कुछ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ...
निशाँ ढूढता हूँ कुछ एक कदम चलने को ...
हर बार तेरी यादें झट से उभर आती है...फ़िर वही तेरी यादों मैं लिपटे कुछ लम्हे ...
हर चीज़ मेरी तेरी उन यादों पे रुक जाती है...
किसको सोचूँ जब किसी की पहचान नहीं रही...
किसको बोलूँ जेहेन मैं जब कोई बात नहीं....
किसको देखू जब नजरो मैं सिर्फ़ वहम रहता है...
किसको जियूं जब कोई याद ही मेरे साथ नहीं...
तू है बस तू है अफसाना भी तू हकीकत भी तू...
कुछ और नहीं एहसासों में भी, यादो में भी...
तन्हाई भी तेरी यादो की वजह से नहीं आती...
दुआओं में भी नहीं कोई, मेरी फरियादों में भी...
में चाहता हूँ की इनको कुछ समझ सकूं...
हर बार उनकी याद जेहेन से मिट जाती है...
जागते ही जीने का एहसास होता है मुझे...
कहाँ नींद सुला गई मुझे याद नहीं कुछ भी...
तेरी हर एक अदा तैरती है आँखों में यु तो...
कोई सूरत कोई एहसास याद नहीं कुछ भी....
तुझे कितनी ही बार निकला है जेहेन से...
देखो ये भी मैं अब याद नहीं कर पा रहा हूँ...
हर बार तू और खालीपन बचते हैं मुझमें...
इसके सिवा कुछ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ...
निशाँ ढूढता हूँ कुछ एक कदम चलने को ...
हर बार तेरी यादें झट से उभर आती है...फ़िर वही तेरी यादों मैं लिपटे कुछ लम्हे ...
हर चीज़ मेरी तेरी उन यादों पे रुक जाती है...
किसको सोचूँ जब किसी की पहचान नहीं रही...
किसको बोलूँ जेहेन मैं जब कोई बात नहीं....
किसको देखू जब नजरो मैं सिर्फ़ वहम रहता है...
किसको जियूं जब कोई याद ही मेरे साथ नहीं...
तू है बस तू है अफसाना भी तू हकीकत भी तू...
कुछ और नहीं एहसासों में भी, यादो में भी...
तन्हाई भी तेरी यादो की वजह से नहीं आती...
दुआओं में भी नहीं कोई, मेरी फरियादों में भी...
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