यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया..
कल सुबह से ही शायर "शकील बँदायूनी" के ये बोल घुमर रहे थे अन्तःस्थल में
पहले त्रिवेदी जी ने फिर बाबूमोशाय ने जनता को अपने अपने अंदाज में रुलाया अब तो जैसे आदत सी हो गयी है हमे सर झुका के रोने की
बहुत भरोसा था देश को मनमोहन जी चिदम्बरम जी और प्रणब बाबु पे लेकिन क्या मिला इस भरोसे का सबब ?
बाबा नागार्जुन ने शायद आज के दिन के लिए ही लिखा था
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
आज जनता को मेहेंगाई के बोझ में दबा के, नाना प्रकार के करों की जंजीर में उलझा के राजनेता अपने लिए घोटालों का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं
लेकिन स्वार्थान्ध राजनेतागण याद रहे की ........
मरी खाल की सांस से लौह भस्म हो जाए।।
नागेश मिश्र