
The philosophy of the Upanishads.
Authorized English translation by A.S. Geden.
Published 1908 by T. & T. Clark in Edinburgh .
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लक्ष्य से अनजान मैं हूँ,लस्त मन-तन-प्राण मैं हूँ,व्यस्त चलने में मगर हर वक्त मेरे पाँव मेरा भी विचित्र स्वभाव !!
सोचा करता बैठ अकेले,गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
नहीं खोजने जाता मरहम होकर अपने प्रति अति निर्मम, उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ !!
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